Sunday, April 10, 2022

Raam Navamee

 रामायण गीत


मुकुट को छोड़कर,

धारण किया राम ने जब वल्कल,

तभी संसार में पूजे गये ,  

"प्रभु राम" कहलाये ।


हुआ था जन्म जिनका,

सूर्यवंशी भूप के आँगन,

दुलारा तीन माँओं ने,

अयोध्या राज था पावन ।


गए मुनिराज विश्वामित्र, 

जिनको साथ में लेकर,

कि वध हो दानवों का और, 

भय से मुक्त हों ऋषिवर।


वहीं जाकर जनकपुर में,

धनुष त्रिपुरारि का तोड़ा,

जनक की नंदिनी से,  

सात फेरों का वचन जोड़ा ।


पिता का यश न हो धुमिल,

झुके मस्तक न लज्जा से,

बने युवराज, सन्यासी ,

विमुख हर साज-सज्जा से ।


सिया को लेकर साथ, 

मातु कैकेयी को शिर नवाये,

हाथ में ले कर लक्ष्मण का हाथ,

जब वनवास को आये ।


गले लगकर-लगाकर 

वो निषादों और केवट को,

बनाकर आश्रय अपना 

कभी पीपल, कभी वट को ।


भरत की याचना पर, 

धर्म का सब मर्म समझाया,

नवाकर शीश, जोड़े  हाथ,

सबको देश लौटाया ।


अभी कुछ ही दिन किए थे व्यतीत,

कि बहन रावण की आयी,

किया अपमान सीता का,

लखन से नाक कटवायी ।


दशानन स्वर्णनगरी में, 

उठा ले गया सिय को,

सियापति हो उठे निष्प्राण-से,

सम्भालते अपने हिय को ।


मिले हनुमान से विह्वल,

हरी सुग्रीव की पीड़ा,

शबरी के जूठे बेर खाकर,

उठाया दुष्ट राक्षस के संहारण का बीड़ा ।



लुटाया स्नेह सबपर,जो मिला, 

क्या रीछ क्या वानर,

विभीषण, जो विपक्षी थे, 

दिया उन्हें भी आदर ।


पवनसुत लांघ सागर को गए,

जिनकी कृपादृष्टि पाकर,

बनाया था नल-नील ने सेतु, 

राम नाम लिख-लिखकर ।


छिड़ा फिर राम-रावण  युद्ध,

भूमिशायी हुआ रावण,

सौंपी लंकेश की लंका विभीषण को, 

निभाया अपना प्रण ।


मिली तब प्राणप्रिय सीता,

सकल वनवास भी बीता,

सभी की आत्मा का घट,

व्यथा के नीर से रीता ।


विजय होती सदा उसकी,

चले जो धर्म के पथ पर,

नहीं उपदेश ही केवल दिया, 

अपितु दिखलाए वो जी कर ।



हमेशा मन्थराओं को, उदधि को,

जो क्षमा कर दे,

अहिल्या जब शिला हों, 

श्वांस उनकी देह में भर दे ।


पराई पीर को जो समझे, 

रहे परमार्थ को तत्पर,

जटायु को लिये बैठे रहे जो,

अपने अंक में भरकर ।


अबोले खग-विहग, नग,भूमि,

सब पर प्रेम जो वारे,

विनय के साथ जो,

बल और पौरुष बाहु में धारे ।


पुरुष उत्तम है वही, 

कर्तव्य का नित भान हो जिसको,

उचित-अनुचित, कुपथ और

पुण्यपथ का ज्ञान हो उसको ।


यही है मूल उपसंहार, 

'रामायण' सबसे कहलाए,

वही व्यक्ति है 'राम',

जो मर्यादा का पर्याय बन जाये ।


जय श्री राम 🙏🏻


श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं


I am thankful to the unknown contributor for this poem. Namo Vah.


Thursday, January 27, 2022

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

 


 अनेक भाषाएं, अनेक बोलियाँ, एक स्वर...

अनेक पंथ, अनेक पथिक, एक ही रंग रुधिर...


अनेक योग्यताएं, अनेक भिन्नताएं, राष्ट्रप्रेम शुचि...

अनेक मानस, अनेक आचार-विचार, एक ही रुचि...


अनेक श्वास, अनेक स्पंदन, एक हृदय...

अनेक खान-पान, अनेक स्वाद, एक ही पवन मलय...


विविध रंग की मणियों को एकसूत्र करनेवाला हमारा संविधान, और उससे जनित सुंदर और सुरम्य हमारे गणतंत्र की माला...

गणतंत्र दिवस ही हार्दिक शुभकामनाएं...